

नई दिल्ली : बिहार में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए – तारापुर और कुशेश्वर स्थान। जहाँ तारापुर मुंगेर में स्थित है, वहीं कुशेश्वर स्थान दरभंगा में। एक गंगा के इस पार है और दूसरा गंगा के उस पार। राजद के लिए दोनों पार से बुरी खबर आई है। इस विधानसभा उपचुनाव में उसे दोनों ही सीटों पर हार झेलनी पड़ी। दोनों सीटें सत्ताधारी जदयू की झोली में गई। राजद के संस्थापक-अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने 3 साल बाद चुनाव प्रचार किया, लेकिन उनकी पार्टी के लिए नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा।
कुशेश्वर स्थान के नतीजे: जदयू ने युवा कंधा + राजनीतिक घराना पर जताया भरोसा
सबसे पहले आँकड़ों की बात कर लेते हैं। कुशेश्वर स्थान ने जदयू ने युवा अमन भूषण हजारी पर भरोसा जताया था। 26 वर्ष के अमन भूषण हजारी युवा ज़रूर हैं, लेकिन इलाके के एक मजबूत राजनीतिक घराने से आते हैं। उनके पिता शशि भूषण हजारी ने इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई थी। जुलाई 2021 में उनके निधन के बाद ये सीट खाली हुई थी। टिकट उनकी पत्नी को दिया जाना था, लेकिन उनका भी असामयिक निधन हो गया। जदयू ने युवा कंधों पर भरोसा जताया।
मतगणना की शुरुआत से ही यहाँ जदयू ने बढ़त बनाए रखी। लोगों का कहना है कि अमन भूषण हजारी को सहानुभूति वोट भी खूब मिले। उन्हें 59,887 (45.72%) वोट प्राप्त हुए, जबकि राजद उम्मीदवार गणेश भारती को 47,192 (36.02%) वोटों से ही संतोष करना पड़ा। लोजपा और कॉन्ग्रेस के वोटों को मिला भी दें तो ये 11,225 वोट होते हैं, जो इस सीट पर जीत के अंतर 12,698 से भी कम है। 2020 विधानसभा चुनाव में उनके पिता के जीत का अंतर से ये ज्यादा है।
जदयू ने बिहार के जल संसाधन और सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री संजय झा को कुशेश्वर स्थान विधानसभा सीट की जिम्मेदारी सौंपी थी, जो पड़ोसी जिले मधुबनी के रहने वाले हैं। लालू यादव का यहाँ आना और पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का कैम्प करना भी बेअसर साबित हुआ। इस सीट पर मुस्लिम, यादव और ब्रह्मा बड़ी भूमिका निभाते हैं, ऐसे में राजद को अपने परंपरागत माई समीकरण के अलावा मुसहर जाति के उम्मीदवार के कारण उनके समुदाय के वोटों की भी अपेक्षा थी, जो नहीं हुआ।
राजपूत, कुर्मी, पासवान और रविदास समुदाय की भी इस सीट पर अच्छी-खासी संख्या है। राजद और कॉन्ग्रेस के बीच दरार आई। लालू यादव ने कॉन्ग्रेस नेता के लिए ‘भकचोन्हर’ शब्द का प्रयोग कर दिया। बाद में बयान आया कि सोनिया गाँधी से उनकी बात हो गई है और गठबंधन जारी रहेगा। इससे जनता और कन्फ्यूज्ड हो गई। 2020 में महागठबंधन में कॉन्ग्रेस ने यहाँ से चुनाव लड़ा था। इस बार सीट राजद ने कॉन्ग्रेस को नहीं दी। फिर फोनों अलग-अलग लड़े।
तेजस्वी यादव ने मुसहर जाति से उम्मीदवार बना कर इसे भुनाने की अच्छी-खासी कोशिश की थी और इससे वो वहाँ यादव-मुसहर गठजोड़ बनाना चाहते थे। राजद ने मुस्लिम-यादव उम्मीदवार न देकर दोनों सीटों पर एक प्रयोग किया था, जिसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला। CM नीतीश कुमार, भाजपा के सुशील मोदी, तारकिशोर प्रसाद और संजय जायसवाल, HAM के जीतनराम माँझी और VIP के मुकेश सहनी ने अपने-अपने समीकरणों के हिसाब से चुनाव प्रचार किए।
तारापुर विधानसभा क्षेत्र: मुंगेर में भी फेल हुआ तेजस्वी यादव का गणित
मुंगेर के तारापुर विधानसभा क्षेत्र पर भी राजद ने पूरा जोर लगाया था। यहाँ टक्कर काँटे की जरूर हुई, लेकिन अंत में जदयू उम्मीदवार ने बाजी मारी। जदयू के राजीव कुमार सिंह को 79,090 (46.62%) मत प्राप्त हुए, जबकि राजद के अरुण कुमार को 75,238 (44.35%) वोट मिले। जैसा कि आप देख सकते हैं, 3852 (2.27%) वोटों से हार-जीत का फैसला हुआ। कॉन्ग्रेस और जदयू मिला कर 8954 वोट ही ला पाए। कॉन्ग्रेस को नोटा से लगभग एक हजार वोट अधिक आए।
राजद ने जहाँ वैश्य समाज से उम्मीदवार उतारा था, वहीं जदयू ने अपने परंपरागत कुशवाहा समाज से उम्मीदवार दिया। हाँ, जीत का अंतर जरूर पिछली बार के मुकाबले घट गया। लेकिन, राजीव कुमार सिंह इससे पहले अन्य चुनावों में हारते ही रहे थे। वर्ष 2020 में तारापुर विधानसभा क्षेत्र से जदयू प्रत्याशी मेवालाल चौधरी ने 7256 मतों के अंतर से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी राजद प्रत्याशी सह पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश यादव की पुत्री दिव्य प्रकाश को हराया था।
राजद की हार के साथ ही मुंगेर के मुख्य बाजार असरगंज स्थित उसके दफ्तर में सन्नाटा छा गया। लोगों में ऐसी चर्चा होने लगी कि जाति के भरोसे चुनाव लड़ने वाले राजद के उम्मीदवार को उनकी अपनी ही जाति का समर्थन नहीं मिला। वर्ष 2000 में भी अरुण कुमार भाजपा नेता अश्विनी कुमार चौबे के विरुद्ध चुनाव लड़े थे, लेकिन तब जीत का अंतर इससे कम रहा था। इसके बाद वो भागलपुर में राजद के नगर अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे और असरगंज को ही गढ़ बनाया था।
इस क्षेत्र में यादव 65 हजार, कुशवाहा 58 हजार, अति पिछड़ा 48 हजार, वैश्य 40 हजार, सवर्ण 40 हजार, SC 35 हजार, मुस्लिम 22 हजार अन्य 9 हजार कुल 3 लाख 17 हजार मतदाता हैं। तेजस्वी यादव ने वैश्य और माई समीकरण के भरोसे अपना अंकगणित लगाया था। लेकिन, अब साफ़ हो गया है कि ये फिट नहीं बैठा। तारापुर में जदयू ने दिवंगत विधायक मेवालाल चौधरी के परिवार से किसी को नहीं उतारा। बताया जाता है कि तेजस्वी यादव ने हर पंचायत के लिए विधायकों को जिम्मेदारी दी थी।
तारापुर विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी जदयू ने मंत्री अशोक चौधरी को सौंपी थी। दोनों सीटों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो दिनों तक चुनाव प्रचार किया। राजद ने रणविजय साहू के नेतृत्व में राजद के वैश्य विधायकों को मैदान में उतारकर माहौल भी बनाया था। अशोक चौधरी ने जदयू और भाजपा के नेताओं के बीच सामंजस्य बिठाने और चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न तो कहीं कैम्प किया, न ही चुनाव प्रचार में ज्यादा दिन खपाए।